Saturday 9 August 2014

स्वर्ग और नर्क

स्वर्ग और नर्क के बीच
फसा हूँ आजकल मैं
फिर भी पता नहीं चलता
कहाँ स्वर्ग , कहाँ नर्क 

सोचता हूँ सब छोड दूँ

और विदा ले लूँ यहाँ से
उस अनदेखे स्वर्ग को ढूंढ़के   
लगता है ये जहान नर्क है 
जहान सपने सिर्फ़ जलते है 
लोग बातों से उन्हे जलाते है
मीठी बातों से फसाते है
सोचता हूँ सब छोड दूँ 
और विदा ले लूँ यहाँ से 

फिर देखता हूँ तो लगता है 

ये दुनिया इतनी बुरी भी नहीं 
यहाँ मेरे साथ दोस्त है 
जो पास आकर ख़ुशी देते है 
जब एक सपना जलता है मेरा 
तो दूसरा वो दिखाते है 
देखने की हिम्मत देते है 
मीठी बातों से हसाते है 
फिर से सोचने लगता हूँ 
क्यूँ विदा ले उन सब लोगों से 
जो मेरे ख़ुशी समझते है 

स्वर्ग और नर्क के बीच 

फसा हूँ आजकल मैं 
फिर भी पता नहीं चलता 
कहाँ स्वर्ग , कहाँ नर्क